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खंडकाव्य

               संस्कृत काव्यशास्त्र  के ग्रंथों में खंडकाव्य की कोई विस्तृत व्याख्या नहीं है।  खंडकाव्य प्रबंध काव्य का ही एक भेद है।  अतः तात्विक दृष्टी से इसमें महाकाव्य के लगभग सभी तत्व आते है।  किन्तु आकार-स्वरूप की भिन्नता के कारण इन तत्वों में अंतर पड़ जाता है।  खंडकाव्य में महाकाव्य के तत्वों का संकोच हो जाता है।  जितना अंतर उपन्यास और कहानी में या नाटक और एकांकी में होता है, उतना ही अंतर महाकव्य और खंडकाव्य में होता है।  महाकाव्य समस्त जीवन की व्याख्या प्रस्तुत करता है, तो खंडकाव्य जीवन के किसी एक महत्वपूर्ण अंश की मार्मिक व्याख्या करता है।
                 आ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने खंडकाव्य के संदर्भ में लिखा है - महाकाव्य के ढंग पर जिस काव्य की रचना होती है, पर जिसमें पूर्ण जीवन न ग्रहण करके खंड-खंड जीवन ही ग्रहण किया जाता है, उसे खंडकाव्य कहते है। इस परिभाषा के आधार पर खंडकाव्य की निम्न विशेषताएँ हो सकती है -
1. खंडकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष का चित्रण किया जाता है।
2. खंडकाव्य में महाकाव्य के लक्षणों को संक्षिप्त रूप में स्वीकारा जाता है।
3. खंडकाव्य रूप और आकार में महाकाव्य से छोटा होता है।
4. खंडकाव्य वर्णन प्रवाह, प्रभावान्विति आदि गुणों से युक्त होता है।

               महाकाव्य और खंडकाव्य का स्वरूप देखने के पश्चात इनके बीच का अंतर निम्न तरह स्पष्ट किया जा सकता है -

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