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कहानी

         कथा सुनने और कहने की प्रथा मानव में आदिम है।  कहानी शब्द 'कहना' से बना है।  यद्यपि कहानी सबसे प्राचीन विधा है। क्योंकि मनुष्य के विकास के साथ कहानियों का इतिहास जुड़ा है। भारतीय साहित्य में तो वैदिक काल से ही कहानियों का प्रचलन रहा है। किंतु हिंदी के क्षेत्र में आज जो कहानियां प्रचलित है, वो पाश्चात्य मनोभाव से ओतप्रोत है। कहानी आख्याइका, गल्पकथा आदि नामों से जानी जाती है। कहानी के स्वरूप को स्पष्ट करनेवाली कई परिभाषाएं भारतीय तथ पाश्चात्य विद्वानों ने दी है। कहानी के जनक और प्रवर्तक एडीनर ने कहानी को संक्षिप्त आख्यान माना है, जो एक बैठक में ही पढ़ा जा सके।  प्रेमचंद के अनुसार कहानी ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित किया जाए। लेखक का उद्देश्य उसके चरित्र, उसकी शैली, कथा विन्यास, भाव को कहानी के माध्यम से स्पष्ट करना है।
       डाॅ. लक्ष्मीनारायण लाल मानते है कि कहानी वह कला है, जो मानव के बाह्य जीवन और उसके अंतरंग में बनते-बिगडते भाव समूह और समस्या को क्षणिक विद्युत प्रकाश की भांति हमारे सामने ला छोडती है और पाठक का मन एवं मस्तिष्क उसके भावों से घनीभूत हो जाता है। 
      संक्षेप में कहा जा सकता है कहानी लघु आकार की ऐसी गद्य विधा रूपी कला है, जिसमें जन्य-जगत, घटना  वस्तु, व्यक्ति-परिस्थिति, भाव विचार आदि का अनुसरन होता है । 

कहानी के तत्व 
       कहानी जीवन के बोधात्मक, संवेदनात्मक क्षण पर आधारित होती है। जिसमें देश और जाति का कोई विशेष व्यवधान नहीं होता। उपन्यास की तरह ही कहानी के 6 तत्व होते है।
1.कथानक
            कहानी को मूर्त रूप देनेवाला यह कहानी का तत्व वास्तव में एक या दो-चार संक्षिप्त घटनाओं का संचयन होता है। अनावश्यक ब्यौरे तथा वर्णनों के लिए यहां स्थान नहीं होता। संबंधता, तारतम्य, कौतुहल कथानक के अंग माने जाते है। वर्णन में सूक्ष्मता भी कथानक केलिए आवश्यक है। कहानी में कथा की मुख्य चार अवस्थाएं होती है - आरंभ, आरोह, चरम सीमा, अवरोह। कहानी के कथा आरंभ पात्र परिचय, वातावरण चित्रण या मनोचित्रण की विशेष स्थिति में होता है। घटनाएं घात-प्रतिघात आरोह कहलाएंगी। इससे उत्पन्न परिणाम चरम सीमा और अंत में जब पाठकों की उत्सुकता क्षमित होंगी तब उपसंहार होगा।
2.पात्र
          कहानी की सीमा संक्षिप्त होती है। इसलिए पात्र भी संक्षिप्त होंगे। पात्रों के माध्यम से जीवन के खंड चित्रों को उजागर किया जाता है। कभी वर्णनात्मक प्रणाली में कहानीकार चरित्रों का चित्रण करता है, तो कभी पात्रों के व्यवहार, संवाद उन्हें स्वयं व्यक्त करते है। चरित्र चित्रण की कोई भी प्रणाली क्यों न हो, पात्र आवश्यक होते है।
3. संवाद
          कथ्य, कथानक और पात्रों में विश्वसनीयता और गतिशीलता लाने के लिए संवादों की योजना होती है। चारित्रिक गुणों को रूपायित करनेवाले और वातावरण को अंकित करनेवाले संवाद ही योग्य माने जाएंगे।
4. वातावरण
          कथ्य, कथानक और पात्रों की सत्यता देशकाल-वातावरण में उन्हें और ज्यादा विश्वसनीय बना देती है। कहानी के सभी पात्र योग्य वातावरण में ही सजीव होते है।
5. भाषाशैली
          कहानी सुबोधगम्य बने इसलिए कहानी की भाषा सरल चाहिए। जहां तक अभिव्यक्ति का प्रश्न है, शैली संप्रेषनशील और प्रभावी चाहिए। ताकि पाठकों को लेखक का मंतव्य ज्ञात हो और मनोरंजन मिले।
6. उद्देश्य
        कहानी का मूल प्रेरणा बिंदू उद्देश्य कहलाता है। उदृदेश्य के रूप में कहानीकार कुछ भी अपना सकता है। समाज की किसी कुरीति, रूढी, व्यक्ति की समस्या, जीवन समाज का व्यापक प्रश्न आदि भी कहानी के केंद्रबिंदू बन सकते है। उद्देश्य के अभाव में कहानी कहानी नहीं बन सकती। उद्देश्य के रूप में कहानी में संप्रेषन की क्षमता चाहिए। मानवीय मूल्यों को उजागर करना ही कहानी का उद्देश्य हो और उनकी रक्षा काने की प्रेरणा देना उनका संदेश हो।

कहानी के भेद       
               उपन्यास के समान ही कहानी के भी अभिव्यक्ति, वर्ण विषय, आधारभूत तत्व के आधार पर कुछ भेद माने गए है - वर्णनात्मक, ऐतिहासिक, आत्मकथात्मक, संवादात्मक, पत्रात्मक, प्रतिकात्मक, चरित्रप्रधान,  सामाजिक विषय पर आधारित, राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक, घटनाप्रधान, चरित्रप्रधान, भावप्रधान, वातावरण प्रधान, समस्याप्रधान,नई कहानी, अचेतन कहानी, सचेतन कहानी आदि।

उपन्यास और कहानी में अंतर
  1. कहानी जीवन की एक झलक मात्र प्रस्तुत करती है। तो उपन्यास संपूर्ण जीवन का विशद और व्यापक चित्र उपस्थित करता है।
  2. कहानीकार के लिए संक्षिप्त और संकेतात्मकता आवश्यक है, तो उपप्यासकार के लिए विवरणपूर्ण, विशद और व्याख्यानपूर्ण शैली आवश्यक है। 
  3. कहानीकार एक भाव, प्रभाव का विशेष चित्रण करता है, तो उपन्यास में प्रासंगिक कथाओं का संगठन , आधिकारिकता, कथा की एकरसता को दूर करने तथा वर्णन में विविधता लाने के लिए विविध भाव आवश्यक होते है।
  4. कहानी में थोडे समय में ही महत्वपूर्ण बात कहनी होती है। अतः कला सूक्ष्मता इसमें अवाश्यक होती है। कहानी कलात्मक अधिक होती है। वह एक भाव विशेष का ही चित्रण करने का प्रयास करती है। तो उपन्यास में सूक्ष्म कला की उतनी आवश्यकता नहीं, जितनी व्यापक उदात्त दृष्टिकोण तथा भाव, रस और परिस्थिति के समग्र रूप में चित्रण की । रस के विविध रूपों का समावेश उपन्यास में हो सकता है।
  5. कहानी द्वारा हल्का मनोरंजन ही प्रायः संपादित होता है। तो उपन्यास हृदय मंथन मनसंस्कार भी करता है ।

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