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वर्णिक छंद


1 . मन्दाक्रान्ता -
इस वार्णिक समवृत्त छंद में प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है।  तथा मगण, भगण, नगण ,तगण ,रगण और अंत में दो गुरु वर्ण के क्रम में होते हैं। यति 4 ,6 एवं 7 वर्णों पर होती है !
उदाहरण -
  कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
  तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
  धीरे -धीरे सम्भल रखना औ उन्हें यों बताना ।
  पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा ॥
या 
दो वंशों में प्रकट करके, पावनी लोक लीला
सौ पुत्रों से अधिक इनकी पुत्रियां पुण्यशीला
त्यागी भी है शरण जिनके अनासक्त गेही
राजा योगी जय जनक वे पुण्य देही वैदेही

2 .शिखरिणी -
यह सम-वार्णिक  छन्द  है।   इसमें क्रमश 17 -17  वर्ण  होते  है। इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण,  नगण ,  सगण,  भगण और अन्त में लघु और गुरु  होते है।  
उदाहरण -
 छटा  कैसी  प्यारी , प्रकृति  तिय  के  चन्द्रमुख   की
नया  नीला   ओढ़े   वसन   चटकीला    गगन      का
जरी  सल्मा  रूपी , जिस   पर  सितारे  सब    जड़े
गले   में    स्वर्गगा , अति  ललित   माला  सम  पड़ी
या 
मिली मैं स्वामी से पर कह सकीं  क्या संभल के
बहे आँसू हो के सखि सब उपालंभ गल के
उन्हें हो आयी जो निरख मुझको नीरव दया
उसी की पीड़ा का अनुभव मुझे है रह गया

3. द्रुत बिलम्बित -
यह वार्णिक समवृत्त छंद है।  इस के प्रत्येक चरण में कुल 12 वर्ण होते है।  इसमें क्रमशः   नगण ,  दो भगण , रगण का क्रम रखा जाता है !
उदाहरण -
दिवस का अवसान समीप था
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती
कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा
या 
  न जिसमें कुछ पौरुष हो यहां
  सफलता वह पा सकता कहां ?

4. शार्दूलविक्रीडित - 
शार्दूलविक्रीडित छन्द के प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं। (12) और (7) पर यति होती है। वर्ण मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और अंत ,में एक गुरु के क्रम से रखे जाते हैं।
उदाहरण -
आ बैठी उर मोहजन्य जड़ता विद्या विदा हो गई 
पाई कायरता मलीन मन को हा वीरता खो गई 
जागी दीन दशा दरिद्र जन की श्री संपदा सो गई 
माया शंकर की हँसाय हमको, रुद्रा बनी रो गई

4. सवैया -
वार्णिक समवृत्त छंद है। एक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं। इसके कई भेद है। 
उदाहरण -    (1) मत्तगयंद (2) सुन्दरी सवैया (3) मदिरा सवैया (4) दुर्मिल सवैया (5) सुमुखि सवैया (6)किरीट सवैया (7) गंगोदक सवैया (8) मानिनी सवैया (9) मुक्तहरा सवैया (10) बाम सवैया (11) सुखी सवैया (12) महाभुजंग प्रयात
यहाँ मत्तगयंद सवैये का उदाहरण प्रस्तुत है -
सीख पगा न झगा तन में प्रभु जाने को आहि बसै केहि ग्रामा ।
धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पांव उपानह की नहिं सामा ॥
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक रहयो चकिसो वसुधा अभिरामा ।
पूछत दीन दयाल को धाम बतावत आपन नाम सुदामा ॥
  यहाँ श् को श् शब्द को ह्वस्व पढ़ा जाएगा तथा उसकी मात्रा भी एक ही गिनी जाती है !
मत्तगयंद सवैये में 23 अक्षर होते हैं ! प्रत्येक चरण में सात भगण ( ैप्प् ) और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं तथा चारों चरण तुकान्त होते हैं !

5. कवित्त -
यह वार्णिक समवृत्त छंद है।  जिसमें 31 वर्ण होते है।  16 - 15 पर या 8 ,8,8,7 वर्णों पर यति होती है तथा अंतिम वर्ण गुरु होता है। चरनों में तुक होती है।
उदाहरण -
सहज विलास हास पियकी हुलास तजि ,   = 16 मात्राएँ
दुख के निवास प्रेम पास पारियत है ।         = 15 मात्राएँ
कवित्त को घनाक्षरी भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे मनहरण भी कहते हैं ।

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