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रेखाचित्र

              इसे ही शब्द चित्र कहा जाता है। जो भावप्रधान स्वरूप की आाधुनिकतम गद्य विधा है। इसे कहानी और निबंध के बीच की विधा माना जाता है। पर इसका अलग और निश्चित स्वरूप है। इसे भावात्मक गद्य साहित्य के अंतर्गत भी माना जाता है। इस पर चित्रकला का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। जिस प्रकार चित्रकार कुछ रेखाओं के गिने-चुने उभारों से विशेष प्रकार की भावनाएं प्रकट करता है, उसी प्रकार गद्यकार शब्दों के माध्यम से एक प्रकार का रेखा-रंग रहित चित्र-सा प्रस्तुत करता है। इनके माध्यम से ही एक बिंब उभरकर पाठक के सम्मुख आ जाता है।

रेखाचित्र का स्वरूप
          शाब्दिक रेखाओं के द्वारा वर्ण्य भाव या विषय का सजीव, सप्राण, मूर्त चित्र प्रस्तुत करना ही रेखाचित्र है। इसकी चित्रमयता में रंगों की अस्पष्टता के बाजजूद एक प्राणवत्ता, सजीवता का आभास होता है। सांकेतिकता, कल्पना इस रेखाचित्र को ओर अधिक सजीव बनाते है। पाठक कल्पना के रंगों द्वारा चाहे जितना भी भाव-अर्थ ग्रहण कर ले, किंतु उसका मध्य-बिंदू सदा-सर्वदा एक ही रहता है। अनेकता और वैविध्यता को इसमें स्थान नहीं है।
           'हिंदी साहित्य कोश' में रेखाचित्र की परिभाषा कुछ इस प्रकार है -" रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है।"
            रेखाचित्र एक भावप्रधान रचना है, जिसमें एक ही वस्तु विषय का भावप्रवण, मार्मिक एवं प्रभावी किंतु शाब्दिक रेखाओं में अंकन होता है।

रेखाचित्र के तत्व अथवा गुण
           रेखाचित्र एक ऐसी साहित्यिक विधा है, जिसमें अन्य गद्य विधाओं की कोई-न-कोई विशेषता समाहित है। फिर भी इसके तत्वों में विषयसंबंधी एकात्मकता, अंर्तमुखी चारित्रिक विशेषता, संवेदनशीलता, संक्षिप्तता, विश्वसनीयता, प्रतिकात्मकता को लिया जा सकता है।
1. विषयसंबंधी एकात्मकता
          रेखाचित्र का वर्ण्य विषय ऐसे एक ही मध्यबिंदू पर केंद्रित हो, जिसमें विस्तार की गुंजाइश या आवश्यकता न रहे। कुछ शाब्दिक रेखायें मिलकर ऐसे भाव बिंब को उजागर करें, जो पाठक को उस वर्ण्य विषय का साक्षात्कार करवाएं।
2. अंर्तमुखी चारित्रिक विशेषता
          रेखाचित्र में बाहय ब्यौरे के लिए कोई स्थान नहीं। उसमें तो वर्ण्य विषय की भाव-प्रवण मुद्रा का ही अंकन रहा करता है।
3. संवेदनशीलता
        साहित्य में जिसे जीव, प्राण या आत्मा कहा गया है, रेखाचित्र के संदर्भ में व्यक्त संवेदना और संवेदनशीलता ही सब कुछ है। अनुभूति और भाव तीव्रता को लेखक शाब्दिक रेखाओं द्वारा व्यक्त करता है।
4. संक्षिप्तता
         इसके द्वारा ही लेखक रेखाचित्र में गहनता को ला सकता है। यहां भावों की तीव्र अनुभूति और सशक्त रूपायन का अधिक महत्व होता है।
5.विश्वसनीयता
          रेखाचित्र में स्वानुभूत प्रसंगों की अतः योजनाओं से ही विश्वसनीयता की सृष्टि की जा सकती है। अतः पाठक भी यह अनुभव कर सकता है कि वह कोई शब्द चित्र देख रहा है।
6.प्रतिकात्मकता
        इसे रेखाचित्र का शिल्पगत तत्व कहा जा सकता है। वर्ण्य विषय का चित्र प्रस्तुत करने के लिए प्रतिकात्मक रेखाओं अर्थात शब्दों की योजना आवश्यक होती है।

रेखाचित्र के प्रकार
         रेखाचित्र के प्रमुख्तः पांच प्रकार माने गयं है। वर्णनात्मक, संस्मरणात्मक, चरित्रप्रधान, मनोवैज्ञानिक , व्यंग्यात्मक आदि।

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