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गद्यकाव्य

             वैसे गद्य काव्य साहित्य का ही परंपरागत रूप है। पर आज जिसे गद्य काव्य या गद्य गीत कहा जाता है, वह पारिभाषिक एवं स्वरूप विधान की दृष्टियों में परंपरा से भिन्न अद्यतन गद्य का काव्यात्मक रूप है। डॉ.भगीरथ मिश्र के अनुसार किसी कथानक, चरित्र या विचार की, कल्पना और अनुभूति के माध्यम से गद्य में सरल,रोचक और रमणीय अभिव्यक्ति गद्य काव्य है। वह छंद मुक्त, व्याकरण सम्मत, रमणीय वाक्य रचना होती है। ’’इस दृष्टि से कथा आख्यायिका, उपन्यास, निबंध, रेखा-चित्र, संस्मरण आदि सभी गद्य काव्य कहे जा सकते है। परंतु आज जिसे गद्य काव्य या गद्य गीत कहा जाता है, उसमें गीतिकाव्य के समान वैयक्तिकता से संयत एक ही भाव या एक ही तथ्यात्मकता का संयमन होता है। अतः आधुनिक गद्य काव्य की दृष्टि से उपरोक्त परिभाषा में से कथानक, चरित्र-चित्रण आदि को निकालकर ही उसे पूर्ण कहा जा सकता है।
            आज संक्षिप्त भावपूर्ण गद्यखंड को गद्यकाव्य कहा जाता है। इसका विषय भी भावगत होता है। गेयता और स्वर-लय का संधान अनिवार्य होता है। सर्जक कलाकार की दृष्टियों का केंद्र भाव का अनवरत प्रवाह ही रहा करता है। इसका आकार-प्रकार भी निबंध की तुलना में बहुत छोटा और लगभग गीति काव्य जेसा ही हो जाया करता है। भावान्विती इसका अपरिहार्य लक्षण है। इधर-उधर स्खलन और भटकाव इसका सबसे बडा दोष है। इसमें गद्यात्मक भाषा का प्रवाह गीति काव्य जैसा ही उर्जस्वित हुआ करता है। इस प्रवाह के कारण ही गद्य में काव्यात्मकता तथा भाषा में सरसता और संगीतात्मकता, चित्रमयता, ध्वन्यात्मकता और नाद-सौंदर्य जैसे गुणों का भी समावेश रहा करता है।
            गद्यकाव्य में अलंकरण की स्पप्ट प्रवृत्ति, विशेषता अन्योक्ति एवं रूपात्मकता की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई देती है। प्रायः ऐसी मान्यता है कि हिंदी में इस गद्य विधा का प्रचलन कवींद्र रवींद्र की गीताजंली की प्रेरणा से हुआ। एक समय तक हिंदी में इस विधा का जोर रहा, पर आज इसका प्रायः अभाव ही है।

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