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उपन्यास

              परंपरागत रूप से गद्य साहित्य और उसके समस्त विधात्मक रूप श्रव्य साहित्य के अंतर्गत आते है। रूप रचना की दृष्टि से गद्य साहित्य के कथात्मक गद्य, विचार गद्य, विश्लेषणात्मक गद्य, भावात्मक गद्य जैसे कई प्रकार किए जा सकते है। कथात्मक गद्य जिसे कथाश्रुत गद्य साहित्य भी कहा जाता है, ऐतिहासिक, सामाजिक, पारिवारीक, राजनैतिक, आर्थिक किसी भी प्रकार की कथा का विशेष ढंग से वर्णन करता है। इसमें कथा का आश्रय लेकर लेखक अपने विचारों को व्यक्त करता है। यह कथा किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति, वर्ण आदि से संबंधित हो सकती है। जिसके माध्यम से लेखक जीवन के समस्त आयामों को अभिव्यक्त करता है। कथात्मक गद्य के अंतर्गत उपन्यास,कहानी, नाटक आदि को लिया जा सकता है।
उपन्यास
             इसे मानव जीवन का गद्यात्मक महाकाव्य कहा जाता है। जीवन के विविध पक्षों का व्यापक चित्रण यहां कथा के माध्यम से किया जाता है। लोकरंजन की भावना के साथ लोकमंगल की भावना इसके पीछे रहती है। आज साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा उपन्यास बन चुकी है। प्रत्यक्ष जीवन की घटना को कथा के रंग में रंगकर उपन्यास में चित्रित किया जाता है।
व्युत्पतिलभ्य अर्थ
               वास्तव में हिंदी उपन्यास का उद्भव और विकास अंग्रेजी उपन्यास के प्रभाव से हुआ। यह अंग्रेजी के Novel का पर्यायी है। जिसका अर्थ है, कुछ नया। मराठी में कादंबरी, गुजराती में नवलकथा के नाम से यह जाना जाता है।
            हिंदी में उपन्यास शब्द को दो शब्दों के मेल से स्वीकारा गया है। उप + न्यास, 'उप' उपसर्ग है, जिसका अर्थ है सामने या समीप, तो 'न्यास' का अर्थ है रखना । अर्थात निकट रखी हुई वस्तु। जिसके अनुसार हम उपन्यास उस कृति को कहेगें जिसे पढकर लगें, यह हमारी ही है, जिसमें जीवन का प्रतिबिंब हो। वैसे संस्कृत के साहित्य में भी उपन्यास शब्द का उल्लेख हुआ है। लेकिन सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किसने किया यह ज्ञात नहीं है।
परिभाषा 
              भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने इसे अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया है।
न्यु इंग्लिश डिक्शनरी
                                 उपन्यास एक लंबी काल्पनिक कथा या प्रबंधन है, जिसके द्वारा एक कार्यकरण श्रृंखला में बद्ध कथावस्तु में वास्तविक जीवन के प्रतिनिधी पात्र का चित्रण होता है।
बेकन 
            उपन्यास कल्पित इतिहास है।
फिल्डींग
               उपन्यास एक मनोरंजनपूर्ण महाकाव्य है।
बेकर
              उपन्यास वह रचना है,जिसमें किसी कल्पित गद्य कथा द्वारा मानव जीवन की व्याख्या की गई हो।
डॉ.श्याम सुंदर दास
                            मनुष्य के वास्तविक जीवन की कथा उपन्यास है।
प्रेमचंद 
           "मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानता हूं ।मानव चरित्र पर प्रकाश डालना ही उपन्यास का मूलतत्व है।"
            इन परिभाषाओं को देखने के पश्चात कहा जा सकता है कि उपन्यास ऐसा गद्यमय आख्यान है, जिसमें मानव जीवन का यथार्थ चित्रण किया जाता है।
उपन्यास का तात्विक विवेचन
           उपन्यास में घटनाएं होती है, जो उपन्यास के कथा शरीर का निर्माण करती है। यही घटनाएं उपन्यास के जिस अंग में संपादित की जाती है, उन्हें कथावस्तु कहते है। कथावस्तु और घटनाएं जिन मनुष्यों पर आधारित होती है वे मनुष्य पात्र कहलाते है। इन पात्रों का पारस्पारिक वार्तालाप कथोपकथन कहलाता है। पात्रों के आस-पास की स्थिति देशकाल वातावरण कहलाती है। उपन्यास के वर्णन की एक विशिष्ठ पद्धती होती है, जो शैली कहलाती है। संपूर्ण कथा तथा पात्र किसी उद्देश्य या विचार की अभिव्यक्ति करते है। इस तरह उपन्यास के मुख्यतः छह तत्व माने जाते है। जो निम्नअनुसार है-
1. कथावस्तु
           उपन्यासों की दृष्टि से कथावस्तु को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। कथावस्तु उपन्यास का मूलतत्व है। जिसे अंग्रेजी में Plot कहते है। जिस तरह भवन निर्माण के लिए भूमी उसका आधार मानी जाती है, उसी प्रकार कथावस्तु उपन्यास का आधार है। कथावस्तु में तीन गुणों का होना आवश्यक है- रोचकता, संभाव्यता तथा मौलिकता। रोचकता लाने के लिए कौतुहल और नवीनता की आवश्यकता है। आज के जाग्रत पाठक के लिए असंभाव्य घटनाएं कोई अर्थ नही रखती। अतः उपन्यासकार को संभाव्यता की ओर ध्यान देना चाहिए। मौलिकता से तात्पर्य प्रस्तुति के ढंग से है, साथ ही प्रामाणिक अनुभूति से है।
           उपन्यासकार की सफलता के लिए कथानक में समन्वित विकास की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। प्रत्येक उपन्यास के विकास की तीन अवस्थाएं होती है- आरंभ,मध्य और अंत। वैसे देखा जाएं तो कथानक के दो रूप माने जाते है- वस्तुविन्यास की दृष्टि से और अभिव्यंजना या अभिव्यक्ति पद्धती से।
           वस्तुविन्यास के अंतर्गत दो तरह के कथानक होते है। चरित्रप्रधान या भाव-विचार प्रधान तथा घटनाप्रधान । पहले प्रकार में चरित्र या कोई भाव विचार प्रमुख होते है, तो दूसरे में घटना प्रमुख होती है।
            अभिव्यक्ति पद्धति की दृष्टी से वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक, पत्र या संवाद या फिर डायरी रूप में कथानक देखे जा सकते है। पूर्व दीप्तिशैली या फ्लैशबैक शैली इसमें संमिलीत की जा सकती है। वस्तुस्थितियों की जटिलता, जीवन की दृढता उपन्यास के कथानक में द्वंद्व और संघर्ष उत्पन्न करती है। जिससे कथा में गति आती है और कथा विकसित होती है। मुख्य कथा के साथ कुछ उपकथाएं भी चलती है। स्पष्ट है, उपन्यास में कथानक का वही स्थान है, जो मानव शरीर में रीड की हड्डी का होता है।
2. पात्र
             उपन्यास के कथा रूपी शरीर को गति देनेवाले अवयव पात्र कहलाते है। इस कारण उपन्यास के पात्र सजीव, स्वाभाविक, सहज हो। किसी भी पात्र के दो पक्ष होते है- बाह्य और आंतरिक। बाह्य व्यक्तित्व के अंतर्गत पात्र का आकार, रूप, वेशभूषा, आचरण का ढंग, बातचीत का ढंग आते है। तथा अांतरिक पक्ष में उस पात्र की मानसिकता तथा बौद्धिक विशेषतायें आती है।
              उपन्यास के कुछ पात्र केंद्रिय होते है, जिनके इर्द-गिर्द उपन्यास की सारी कहानी घुमती रहती है। ऐसे पात्र को मुख्य पात्र कहा जा सकता है। तो अन्य गौण पात्र होते है, जो मुख्य पात्रों से किसी न किसी रूप से संबंध बनाये रहते है। चरित्र चित्रण की दृष्टि से कुछ पात्र परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को बदलते है, जिन्हें यथार्थवादी पात्र कहा जाता है। जब कि कुछ पात्र अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है- जिन्हें वर्गगत पात्र कहा जाता है। विशेष तथा अलग व्यक्तित्ववाले पात्र व्यक्तिगत पात्र कहलाते है। वैसे उपन्यास में चरित्र -चित्रण की जिन विधाओं या प्रकारों को अपनायां गया है वे - वर्णनात्मक ,नाटकीय, विश्लेषणात्मक आदि है।
3. संवाद योजना
          पात्रों के परस्पर वार्तालाप को संवाद योजना या कथोपकथन कहते है। उपन्यास में लेखक अपनी ओर से बहुत कुछ कह सकता है। मगर यदि वह पात्रों से मुख से वार्तालाप करता है, तो उपन्यास अधिक सजीव बनेगा। वैसे संवाद भी उद्देश पूर्ण होने चाहिए। उपयुक्त अवसरों पर उनका प्रयोग होना चाहिए। अच्छे संवादों की कुछ विशेषतायें होती है।
  1. संवाद चरित्र चित्रण में सहायक होते है ।
  2. संवाद उपन्यास की कथावस्तु को आगे बढानेवाले हो।
  3. संवाद आकर में संक्षिप्त हो।
  4. संवाद पात्र तथा परिस्थिति के अनुकूल हो।
  5. संवाद की भाषा जीवन की भाषा के समांतर हो।
         इस दृष्टि से स्थान आवश्यक, सार्थक, गतिशील चरित्र चित्रणक्षम तथा पात्रानुरूप भाव या विचारारूप संवाद आदर्श कहे जाएंगे।
4. देशकाल वातावरण
           उपन्यास की कथावस्तु जिस परिवेश में घटित होती है, उसका संबंध किसी न किसी स्थान से होता है। कथा किसी समय विशेष या युग विशेष की देन होती है। कथा का विकास भी स्थान और समय के अनुरूप होता  है। उपन्यास में देश के अनुसार रीति-रिवाज, परंपरा, रहन-सहन, आचार -व्यवहार, वेशभूषा, बोल-चाल, व्यवहार तथा राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थिति का चित्रण किया जाता है। देशकाल- वातावरण उपन्यास की कथा में यथार्थवाद लाने में मदद करता हे।
5 भाषाशैली
            भाषाशैली के माध्यम से उपन्यासकार अपनी रचना को आकर्षक और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करता है। भाषा पात्रों को वाणी प्रदान करती  है, तो शैली उसे प्रतिष्ठा दिलाती है। अतः  उपन्यास की भाषा स्पष्ट, सरल और प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। अलंकार, मुहावरें, लोकोक्तियों का प्रयोग आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उपन्याकार के विचार और भावनाएं शैली का रूप पाते है।
        उपन्यास में कई शैलियां पाई जाती है। जैसे वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक,पत्रात्मक, डायरी, मिश्रित शैली, ऐतिहासिक या नाटकीय शैली आदि।
6. उद्देश्य
             प्रत्येक उपन्यासकार किसी न किसी विचार से प्रभावित होकर लेखन कार्य करता है। उपन्यास में जीवन के दृष्टिकोण को व्याख्यायित करने का प्रयास उपन्यासकार का होता हे। इस दृष्टि से उद्देश्य सभी तत्वों का साध्य है। आरंभ में उपन्यासों का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना था। लेकिन साहित्य की अन्य विधाओं की तरह वर्तमान उपन्यास भी जीवन के यथार्थ को सामने रखने की कोशिश करता है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा मानव मन का गहन व्याख्या का प्रयास इसमें किया जा रहा है। जीवन रहस्यों को, जीवन के अनुभवों को व्यक्त करने का कार्य उपन्यास करते है।
 उपन्यास के प्रकार
             वर्ण विषय, उद्देश्य आदि के आधार पर उपन्यास के कुछ प्रकार माने जाते है। इनमें सामाजिक, तिलस्मी, ऐय्यारी, जासूसी, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, आंचलिक, घटनाप्रधान, चरित्रप्रधान, आदर्शवादी, यथार्थवादी, मनोवैज्ञानिक, मार्क्सवादी, जनवादी समस्यावादी आदि प्रमुख है।
              आकार के आधार पर भी बृहत् या महाकाव्यात्मक, लघु उपन्यास जैसे इसके भेद किए जा सकते है।

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