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मात्रिक छंद

1. दोहा -
यह मात्रिक छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं।  यति चरण में अंत में होती है।  सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए।
उदाहरण - 
श्री गुरु चरन सरोज रज,  निज मन मुकुर सुधारि
बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
या 
नैन सलोने अधर मधु, कहूं रहीम घटी कौन
मीठो भावै लोन पर, अरु पर मीठो लोन।

2. सोरठा -
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है।  इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं।  तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है।  इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है ।
उदाहरण -
जिहि सुमिरत सिधि होइ, गणनायक करिवर वदन।
करहु अनुग्रह सोइ, बुद्धि रासि शुभ गुण सदन
या 
  कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।
  जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥
3. चौपाई -
यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं।  प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं।  पहले  चरण की तुक दूसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है।  प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है।
उदाहरण -

जय हनुमान ग्यान गुन सागर । जय कपीस तिहु लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बलधामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।
या 
जगमग जगमग हम जग के मग , ज्योतित प्रति पग करते जग मग।
हम ज्योति हम शलभ, हम कोमल प्रभ, हम सहज, सुलभ, दीयों के मैग।


4. रोला -
मात्रिक सम छंद है , जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 11 और 13 पर यति होती है।  प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं। दो -दो चरणों में तुक आवश्यक है।
उदाहरण -
  नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में ।
  रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में ॥

5. हरिगीतिका -
यह मात्रिक सम छंद हैं। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। यति 16 और 12 पर होती है तथा अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है ।
उदाहरण -
  कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ।
  हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥

6. छप्पय -
यह मात्रिक विषम छंद है।  इसमें छ: चरण होते हैं - प्रथम चार चरण रोला के अंतिम दो चरण उल्लाला के।  छप्पय में उल्लाला के सम -विषम चरणों का यह योग 15, 13 = 28 मात्राओं वाला अधिक प्रचलित है।
उदाहरण -
  सब भांति सुशासित हों जहां , समता के सुखकर नियम ।

7. कुण्डलिया -
मात्रिक विषम संयुक्त छंद है जिसमें छ चरण होते हैं। इसमें एक दोहा और एक रोला होता है। दोहे का चौथा चरण रोला के प्रथम चरण में दोहराया जाता है तथा दोहे का प्रथम शब्द ही रोला के अंत में आता है ! इस प्रकार कुण्डलिया का प्रारम्भ जिस शब्द से होता है उसी से इसका अंत भी होता है !
उदाहरण -
  सांई अपने भ्रात को ,कबहुं न दीजै त्रास ।
  पलक दूरि नहिं कीजिए , सदा राखिए पास ॥
  सदा राखिए पास , त्रास कबहुं नहिं दीजै ।
  त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुनि लीजै ॥
  कह गिरिधर कविराय राम सौं मिलिगौ जाई ।
  पाय विभीषण राज लंकपति बाज्यौ सांई ॥

8. बरवै -
यह  बड़ा सुन्दर छंद है किंतु आधुनिक कविता में इसका प्रयोग बहुत कम हो गया है। यह एक मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम यानी कि पहले और तीसरे चरणों में १२ मात्राएं और सम यानी दूसरे और चौथे चरणों में ७ मात्राएं होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण यानी लघु दीर्घ लघु (ISI )मात्राएं होती हैं।
उदाहरण -
आगि लाग घरु बरिगाए कि अति भल कीन।
साजन हाथ घैलनाए भरि भरि दीन।।




For Video please visit, share and like -  https://www.youtube.com/watch?v=d3iYzsYOGBY&t=1531s

4 टिप्‍पणियां:

  1. Hello Shweta, could you explain what's the exact definition of visham maatrik chhand otherwise you have done it nicely. 😇

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  2. मात्रिक छंद, जहां रचनाओं में मात्राओं की गणना की जाती है। इसके अंतर्गत-
    1. सम मात्रिक छंद- जहां छंद के सभी चरण समान होते हैं।
    2. अर्धसम मात्रिक छंद- जहां पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरण में समानता होती है। किंतु यह दोनों ही एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
    3. विषम मात्रिक छंद- जहां पद्य के चरण के मात्राभार संबंधी नियम में समानता नहीं पाई जाती है।

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  3. दोहा का जो दूसरा उदाहरण दिया है उसमे मात्राओं में छोटी सी त्रुटि है बाकी बहुत बढिय़ा हैं। बहुत बहुत धन्यवाद

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