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निबंध

         निबंध को लेख भी कहा जाता है। गद्य साहित्य में निबंध को एक स्वतंत्र और सर्वश्रेष्ठ विधा के रूप में अपनाया गया है। इसमें लेखक अपने विचारों का प्रतिपादन युक्ती और तर्कों के आधार पर करता है । रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - "गद्य रचना यदी कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।" किसी लेखक का भाषा पर कितना अधिकार है, यह निबंध के द्वारा ही जाना जा सकता है । निबंध रचयिता के व्यक्तित्व का परिचायक है ।

व्युत्पति
          निबंध शब्द की व्युत्पती नि उपसर्ग पूर्व बंध धातु या शब्दांश से मानी जाती है। नि का अर्थ है- विशेष प्रकार से, भली-भांती या उचित ढंग से, तो बंध का अर्थ है बांधना। अर्थात विचारों को विशेष ढंग से, विशेष दृष्टी से प्रस्तुत करना। अत: निबंध में विचारों का एक कसावपूर्ण तारतम्य होना चाहिये। साथ ही सुसंगठण और सुबद्धता भी। 
          संस्कृत साहित्य परंपरा में भी इस शब्द को देखा जा सकता है। पर वर्तमान प्रचलित निबंध अंग्रेजी के Essay का पर्यायवाची है। जहां इसका अर्थ प्रयास, प्रयोग, परीक्षण है। यूरोपियन साहित्य में निबंध का जनक मोंटेन को माना गया है। 

निबंध की परिभाषा
          वास्तव में निबंध ऐसी विचार प्रधान रचना है, जिसमें तर्कसंगत भाषा-शैली से विषय का निरूपण किया जाता है। इसकी कुछ परिभाषाएं निम्न अनुसार है -
मोंटेन इच्छित विषय के निरूपण के प्रयास का नाम निबंध है। 
बेकन विच्छिन्न चिंतन को लिखित रूप में निबंध कहते है। 
जॉन्सन निबंध स्वच्छंद मन की वह तरंग है, जिसमें नैरतर्य या सुसंगठन न होकर प्रधानतया विशृंखलता ही रहती है। 
ओस्बर्न - निबंध किसी सामयिक विषय पर लिखी गई सामान्य रचना है।  
सीताराम चतुर्वेदी - साधारणतः निबंध वह साहित्य रूप है जो न बहुत बड़ा हो, न बहुत छोटा, जो गद्यात्मक हो। 

निबंध विषय -
          विश्व का कोई भी दृश्य-अदृश्य, स्थूल-सूक्ष्म विषय निबंध रचना का विषय बन सकते है। इस प्रकार धर्म, राजनीति, समाज, घर-परिवार,राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीयता, ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, साहित्य, कला, पशु-पक्षी, प्रकृति और सूक्ष्म मनोभाव-व्यवहार निबंध के विषय बने है और बनते आए है। मात्र केवल आलोचना करना ही निबंध नहीं है। 

निबंध के तत्व 
         उपयुक्त विषय का चयन, सरलता, सुबोधता, प्रसादन क्षमता को निबंध साहित्य का प्रमुख तत्व स्वीकारा गया है, जो इसके गुण भी है।
         एक विषय पर अनेक निबंध रचे जा सकते है। जिसकी तात्विक विशेषता यह होंगी कि वह विषय को कितने मौलिक ढंग से प्रस्तुत करता है। 
          विषय का चयन, मौलिक ढंग से उसका प्रस्तुतिकरण, आकार-प्रकार की मर्यादा का निर्धारण और उस मर्यादा की रक्षा इसी में निबंधकार की कुशलता मानी जा सकती है। अनावश्यक विस्तार विषय को अधिक जटिल बना सकता है। 
          निबंध एक सीमित आकारवाली रचना है। पर वही अधूरी या अपूर्ण प्रतीत नहीं होनी चाहिए। बल्कि अपने आप में पूर्ण प्रतीत हो। निबंध को पढ़ने के पश्चात पाठक के सामने वर्ण-विषय का बिम्ब उभरकर आए। निबंध रचना का ढंग भी पाठक को उस रचना से बांधकर रख सकता है। निबंध पढ़ने के बाद लेखक की आस्थायें, रुचियां, प्रवृतियों का स्पष्ट आभास मिले। 
          बिना रोचकता निबंध शुष्क-नीरस न हो जाएं इस ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। 

निबंध की शैली और प्रकार 
         निबंधकार का व्यक्तित्व, उसकी प्रवृत्तियां, रुचियाँ, आस्थायें शैली के द्वारा प्रकट होती है।  वर्तमान में निबंध में अनेक शैलियां देखने को मिलती है।  जैसे - समास शैली, व्यास शैली, प्रवाह शैली, तरंग, चित्रमय, अलंकरण, सूक्ति, व्यंग-विनोद आदि। 
          निबंध के स्वरूप के आधार पर उसके मुख्य दो प्रकार माने गए है -
१. वर्ण्य-विषय के आधार पर 
२. अभिव्यक्ति पक्ष या शैली के आधार पर 
        इसके अतिरिक्त कुछ विद्वान व्याख्यात्मक,परिचयात्मक, इतिवृत्तात्मक, विवेचनात्मक आदि निबंध की कोटियां स्वीकारते है।    

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